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छत्तीसगढ़

मणिपुर हिंसा के विरोध बंद का व्यापक असर

किरंदुल । मणिपुर में हो रहे हिंसा और गत दिवस वायरल वीडियो में दो कुकी आदिवासी समाज की महिलाओं की बहुसंख्यक मैतेयी समुदाय के लोगों के द्वारा नग्न परेड किये जाने और भीड़ के द्वारा सार्वजनिक रूप से छेड़छाड़ कर सामूहिक दुष्कर्म की खबर से देश में सारा आदिवासी समाज उद्वेलित है। मणिपुर की इस शर्मनाक घटना के विरोध में और दोषियों पर त्वरित और सख्त कार्यवाही की मांग को लेकर सर्व आदिवासी समाज के द्वारा बस्तर संभाग को एक दिन के लिए बंद का आह्वान किया गया। घटना के विरोध में शाम को कैंडल मार्च कर मणिपुर सरकार और केंद्र सरकार के विरुद्ध जमकर नारेबाजी की गई । सर्व आदिवासी समाज के बंद के आह्वान का सुबह से ही व्यापक असर देखने को मिला, कल शाम से ही आदिवासी समाज के लोगों के द्वारा लाउड स्पीकर के माध्यम से बंद हेतु व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया। जिसके चलते नगर ही नहीं अपितु पूरे संभाग में सारे व्यापारिक संस्थान और दुकान पूरी तरह बंद रहे। बंद का व्यापक असर रहा है सभी व्यापारी भाइयों ने भी आदिवासी समाज के बंद के आह्वान पर अपनी दुकानें बंद कर पूर्ण रूप से सहयोग दिया और बन्द पूरी तरह सफल रहा। यह घटना सिर्फ आदिवासी समाज की नहीं है बल्कि स्त्री की अस्मिता का सवाल का है जिसका समाज के हर वर्ग को राजनीति से ऊपर उठ कर विरोध करना ही चाहिए। आदिवासियों पर अत्याचार कोई नहीं घटना नहीं है अभी हाल में ही मध्य प्रदेश में आदिवासी पर पेशाब करने और इंदौर में आदिवासी की बेदम पिटाई को खबर थमी ही थी और मणिपुर की यह शर्मनाक घटना सामने आई। आदिवासियों पर इस तरह की अत्याचार की घटना लगातार बढ़ रही है। जिससे पूरा आदिवासी समाज उद्वेलित है। आजादी के इतने साल बाद भी और संविधान द्वारा विशेष प्रदत्त अधिकारों के बावजूद इस तरह की घटना का होना निश्चित की सरकार की नीतियों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। जहां एक तरफ देश में राष्ट्रपति एक आदिवासी महिला है और लगभग 80 दिन से चली आ रही हिंसा पर और इस वाइरल वीडियो के आने के बाद भी इस विषय पर एक शब्द भी बोलने से आदिवासी समाज में रोष के साथ निराशा भी है। जहां प्रधानमंत्री मोदी इस विषय पर बोलने से बचते रहे हैं, माननीय सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद महज 36 सेकंड का बयान दिया। और मणिपुर सरकार की नाकामी पर कुछ नहीं बोले। मणिपुर की राज्यपाल माननीय अनुसुइया उइके के द्वारा टी. वी. इंटरव्यू तस्दीक की गई की उनके द्वारा राज्य की हिंसा की गंभीरता, 5000 से ज्यादा घरों की जलाया जाना, लगभग 60 हजार से ज्यादा लोगों का जनजीवन प्रभावित हो राहत कैम्पों में रहने की बात लगातार केंद्र सरकार की जिम्मेदार लोगों को बताती रहीं, परंतु केंद्र सरकार इन बातों को गंभीरता से नहीं लिया और कोई कार्यवाही नहीं की। जिसका परिणाम आज सारा देश शर्मनाक घटना को वायरल वीडियो के माध्यम से देख रहा है। जिससे अंतरास्ट्रीय स्तर पर देश की बदनामी हुई है।

और केंद्र में भाजपा सरकार के आने के बाद लगातार आदिवासियों और दलितों पर उत्पीडऩ की घटनाएं बढ़ रही है। मणिपुर में भाजपा की ही सरकार है और मुख्यमंत्री मंत्री के हिंसा रोकने में असफल होने के बाद भी लगातार पद में बने हुए हैं इससे भी केंद्र सरकार की मंशा स्पष्ट होती है कि ये लोग सिर्फ इस हिंसा से राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं और कोई कार्यवाही नहीं करना चाहते हैं। इस शर्मनाक घटना के बाद राज्य की पुलिस पर भी गंभीर प्रश्न उठते हैं, दंगाइयों के द्वारा पीडि़त महिलाओं को पुलिस की कस्टडी के उठा लिया गया और पुलिस ने कुछ नहीं किया और मूक दर्शक बनी रही। इसके बावजूद पुलिस के द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं कि गई। पीडि़तों के द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग में भी दो दफा शिकायत की गई लेकिन आयोग के द्वारा भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। यह घटना दबी ही रह जाती अगर वो शर्मनाक वीडियो वायरल न हुई होती। राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेंद्र सिंह एक टी.वी. इंटरव्यू में खुद स्पष्ट रूप से बोल रहे हैं कि ऐसी सैकड़ों घटनाएं हुई है फिर भी उनके द्वारा कोई कार्यवाही नहीं कि गई। दी वायर के एक इंटरव्यू में पत्रकार करन थापर से बात करते मैतेयी नेता प्रमोद सिंह स्पष्ट रूप से बोल रहे हैं कि वे कुकी लोगों को पूरी तरह सफाया करेंगे और राज्य सरकार का उन्हें पूरी तरह समर्थन हासिल है। यह एक गंभीर विषय है कई राजनीतिक दल पहले से ही आरोप लगा रहे हैं कि दंगाइयों को राज्य सरकार से संरक्षण प्राप्त है ऐसे में प्रमोद सिंह की स्वीकारोक्ति इन आरोपों को सही साबित करता है। सर्व आदिवासी समाज की मांग है कि मणिपुर सरकाए को तुरंत बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाया जाए, शर्मनाक घटना में शामिल दोषियों को फांसी दी जाए, राज्य जे आदिवासियों को सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, हिंसा मो प्रभावी तरीके से नियंत्रित कर राज्य में शांति बहाली किया जाए।

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