छत्तीसगढ़

संगम में नदी की रेत से शिवलिंग बनाने की सदियों पुरानी परंपरा

राजिम । माघी पुन्नी मेला में सोमवार को त्रिवेणी संगम में स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने नदी की रेत से शिवलिंग बनाकर जलाभिषेक किया। बिल्वपत्र, धतुरा, केशरईया, कनेर के साथ ही दूध, दही, घी, मिश्री, शक्कर, शहद, सुगंधित तेल, चंदन, गंगाजल समर्पित किया गया। आरती उतारी गई तथा अर्ध परिक्रमा किया गया। पश्चात मंदिरों में पूजा अर्चना एवं जलाभिषेक किये गये। किंवदंति के अनुसार वनवास काल के दौरान दशरथ पुत्र रामचन्द्र देवी सीता के साथ महर्षि लोमश से मिलने पैदल चलते हुए नदी मार्ग से पहुंचे थे। चर्तुमास व्यतीत कर यहां उपस्थित राक्षसों का समूल नाश किया। इस दौरान देवी सीता संगम नदी में स्नान कर शिव के अराधना के लिए रेत से शिवलिंग बनाकर जलाभिषेक किया। जैसे ही उन्होने जल डाला पांच ओर से धारा फूट गया और उसी दिन से शिवलिंग का नाम पंचमुखी कुलेश्वरनाथ महादेव नाम पड़ा। जानकारी के मुताबिक ऐसा शिवलिंग विश्व में कहीं और नहीं मिलता इसे विरले शिवलिंग के श्रेणी में रखा गया।
सौ बिल्वपत्र के बदले मिले सौ पुत्र
श्रीमद्राजीलोचनमहातम्य ग्रंथ के अनुसार राजा का उम्र बीतता चला जा रहा था। पुत्र की आकांक्षा से अनेक धार्मिक अनुष्ठान किये। व्रत, उपवास, दान,स्नान इत्यादि कृत्य के बाद भी मनोकामना पूर्ण नहीं हुई। थक हारकर राजा बैठ गये। एकाएक एक ब्रम्हऋ षि से मुलाकात हुए। उन्होंने दण्डकारण्य स्थित त्रिवेणी संगम के मध्य में विराजमान कुलेश्वरनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन की बात कहीं। उनके कहे अनुसार पति-पत्नि तीन नदी के संगम पर स्नान किये तथा पंचमुखी कुलेश्वरनाथ महादेव के जलाभिषेक पश्चात् 100 बिल्वपत्र चढ़ाये। जिसके कारण उन्हें सौ पुत्रों की प्राप्ति हुई।
मंदिर तीन ओर सीढिय़ों से घिरा
सोंढूर, पैरी एवं महानदी के संगम पर बने विशाल मंदिर नदी तल से 17 फुट ऊंची जगती तल पर बनाये गये है जिसमें बड़ी-बड़ी पत्थरों का उपयोग हुआ है। पहुंचने के लिए तीन ओर से सीढिंया हैं। पहला सीढी पूर्व दिशा की ओर, दूसरा उत्तराभिमुख तथा तीसरा दक्षिण दिशा में कम चौड़ाई के है। मंदिर निर्माण की तिथि सातवी शताब्दी बतायी जाती है। महामण्डप को पार कर गर्भगृह पहुंचा जाता है। जहां आशुतोष महादेव शिवलिंग के रूप में विराजमान है ि़द्वतीय गर्भगृह में जगतजननी मां सीता स्थापित है। मंदिर के चौराहे पर विशाल पीपल का वृक्ष सुंदरता में चार चांद लगाये हुए है।
राम ने चतुर्मास किया व्यतीत
लोमश ऋषि का आश्रम कुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर से तकरीबन 300 गज की दूरी पर स्थित है। त्रेतायुग में बनवास काल के दौरान रामचंद्र जी पहुंचे तब लोमश ऋषि से उनकी मुलाकात हुई। डॉ. मन्नुलाल यदु ने अपने लेख में लिखा है कि चतुर्मास रूककर रामचंद्र ने यहां मौजूद आसुरी शक्तियों का समूल नाश किया। छत्तीसगढ़ सरकार ने राम वनगमन परिपथ के अंतर्गत राजिम का विकास कर रही है।
सोमवार को रहीं मंदिरों में भीड़
सोमवार को शिव का वार माना गया है इसलिए बड़ी संख्या में श्रध्दालुओं ने जल डालकर जलाभिषेक किये भीड़ ज्यादा होने के कारण कतारबध्द होकर अपने बारी का इंतजार किया। इसी तरह से अन्य मंदिरों में भी खासा भीड़ रही।

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