लोकपर्व छेरछेरा में बच्चे घरों में मांगने पहुंचे धान
नारायणपुर । ग्रामीण क्षेत्रों में शुक्रवार छेरछेरा लोकपर्व की धूम दिखी यहां के गली मोहल्ले मे बच्चे घर-घर जाकर अन्न की मांग करते देखे गए। इस पर्व को लेकर नारायणपुर अंचल मे खासा उत्साह देखा गया। खासकर ग्रामीण अंचलों में जहां बच्चों की टोलियां उत्साह के साथ छेरछेरा पर्व को मनाते हुए घर-घर पहुंचकर अन्न दान लेने पंहुचे। मान्यता है कि इस पुस माह एवं त्योहार पर पर जो भी दान किया जाता है, वह महादान होता है। इसका सुखद फल भी प्राप्त होता है।नारायणपुर इलाके मे लोकपर्व छेरछेरा शुक्रवार को आस्था और उत्साह के साथ मनाया गया। फसल के खेतों से खलिहानों में आने की खुशी और अच्छी फसल को लेकर आद्रा और पुर्नवसु नक्षत्र में लोक पर्व छेरछेरा मनाया जाने वाले इस पर्व मे बच्चों की टोली घर-घर जाकर अन्न मांगते है।धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी दिन से ग्रामीण अंचलों में शुभ कार्यों की भी शुरुआत हो जाती है। छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेरते हेरा. जैसे पारंपरिक बोल के साथ छेरछेरा के दिन बच्चों की टोली घर-घर जाकर अन्न मांगती हैं। किसान भी खुले हाथों से बच्चों को अन्न का दान करते हैं। इस दिन लोक गीतों की भी बहार रहती है।विदित हो कि इस दिन सभी घरों में नया चावल का चीला,चौसेला ,फरा ,दुधफरा, भजिया आदि छत्तीसगढ़ी अन्य व्यंजन बनाया जाता है। इसके अलावा छेर-छेरा के दिन कई लोग खीर और खिचड़ा का भंडारा रखते हैं, जिसमें हजारों लोग प्रसाद ग्रहण कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। इस दिन अन्नपूर्णा देवी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जो भी जातक इस दिन बच्चों को अन्न का दान करते हैं, वह मृत्यु लोक के सारे बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इस दौरान मुर्रा, लाई और तिल के लड्डू आदि का वितरण भी किया जाता है।
आपस में बांटते हैं प्रसाद
गली मोहल्ले के घरों के सामने गोल घेरा बनाकर छेरछेरा गीत गाते हुए नृत्य करते बच्चों का कहना है कि हमें घर वालों द्वारा जो भी दान मिलता है उसे आपस में बांटते है। नगदी मिले पैसों से सामान इक_ा कर भोजन बनाकर खाते है तथा प्रसाद के रूप में एक-दूसरे के घर बांटते है। पुन्नी नृत्य करने आए साकरिबेड़ा के बच्चों का कहना था कि इस खुशनुमा माहौल में हम सभी एकजुट होकर पुनी दान लेने घर घर में दस्तक देते है। इस परंपरा से भाईचारा की भावना बढ़ती है। उन्हें हर वर्ष पुनी छेरछेरा त्योहार का बच्चों को बेसब्री से इंतजार रहता है। इस दिन भारी मात्रा मे उन्हें हर घर से धान, चावल व नकद राशि मिलती है। इससे छेर छेरा नृत्य में नाचने आई साकरिबेड़ा की युवती टिकेश्वरी सलाम ने बताया कि छेर छेरा नृत्य के बाद मिले धान ककी कुटाई कर चावल बनाते है, इसके बाद दान मिली राशि से भोजन बनाने सामग्री खरीदी करते है। इसके साकरिबेड़ा गांव सभी ग्रामीणों के साथ मिलकर सामूहिक भोजन का आयोजन किया था है। इससे गांव में सामूहिक एकता, परम्परा, मेल मिलाप होता है।
पारंपरिक त्योहार है छेरछेरा
पुस माह में मनाए जाने वाला पारंपरिक त्योहार छेरछेरा पुनी नगर के साथ साथ ग्रामीण अंचलों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया गया। मौसम के बदलते मिजाज के बावजूद इस पुन्नी त्योहार में बच्चों का उत्साह कम नहीं हुआ।सुबह से ही बच्चे सज संवरकर हाथों में थैला लिए नगदी जमा करने निकल पड़े। पारंपरिक गीत छेरछेरा एवं नृत्य करते हुए झुंड में बच्चों ने छेरछेरा त्योहार मनाया। इस अवसर पर छेरछेरा पुनी नृत्य कर रहे बच्चों, बुजुर्गों को ग्राम व नगरवासी जो भी उनसे बन पड़ा उन्हें दान किया। गौरतलब हो कि छेरछेरा त्योहार के दिन लोग कामकाज पूरी तरह बंद रखते है। इस दिन लोग प्राय: गांव छोड़कर बाहर नहीं जाते उत्सव मनाते है।