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छत्तीसगढ़

बिना गुरु के मानव का शरीर कच्चे घड़े के समान होता है:राधेश्याम व्यास

गरियाबंद । सद्गुरु शिव के समान होता है , माँ के कोख से जन्म लेने के बाद मनुष्य का दूसरा जन्म उस दिन होता है जिस दिन उसके जीवन मे सदगुरू की प्राप्ति होती है , बिना गुरु के मानव का शरीर उस कच्चे घड़े के समांन होता है , गुरु के बिना ये जीवन अधूरा है , हर वर्ष में एक बार जरूर गुरुपूर्णिमा पर अपने गुरु के चरणों पर जाकर दण्डवत होकर आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए , सद्गुरु उसी को बनाना चाहिए जिसकी वाणी से ज्ञान की धारा बहे जिसके दर्शन मात्र से मन प्रसन्न हो जाए जिसके द्वारा जीवन को सही रास्ता मिल सके जीवन का वास्ता मिल सके आज कलयुग में लोग उसको गुरु बना लेते हैं जिसका चेहरा सुंदर हो , जिसके ठाट बाट है जिस गुरु के पास लाखों शिष्य हैं लेकिन विडम्बना रहता है कि ना तो शिष्य गुरु से बात कर पा रहा होता है और न गुरु शिष्य को पहचान पा रहा होता है सामने आ जाएं तो प्रणाम तक कर आना पाना नसीब नही हो पा रहा होता है ऐसे गुरु को कभी सद्गुरु नहीं बनाना चाहिए सद्गुरु उसे बनाएं जिससे आप दिल खोल कर बात कर सको जिससे अपना दुख मिटा सको जिनके दर्शनों के लिए जा सको जिनके चरणों में खुद मत्था नवा सको जिनका आशीर्वाद ले सको ऐसे सच्चा सद्गुरु बनाना चाहिए क्योंकि हमारे बड़े बुजुर्ग कह गए हैं “पानी पीना छानकर और सतगुरु बनाना जानकर ” जल्दबाजी में या किसी के कहने से सद्गुरु नहीं बनाना चाहिए सद्गुरु वह होता है जो शिष्य को खुद अपनी मन की भावना से गुरु नाम और गुरु दीक्षा देवे और उनको एक सच्चा शिष्य बनाये , और शिष्य को सदमार्ग पर चलना सिखाये , गुरु के बारे में खूब बताना , खूब प्रचार प्रसार करना लेकिन गुरु मंत्र गुप्त मंत्र होता है किसी को भी गुरुमंत्र नही बताना चाहिए गुरु दीक्षा मंत्र शिष्य का खजाना होता है , गुरुमंत्र एक शिष्य के लिए पारस मणि के समान होता है महाशिवपुराण के पांचवे दिवस की कथा में गरियाबंद के गाँधी मे पूरा पंडाल हर हर महादेव के गुंजायमान के साथ गुरु की महत्ता पर बखान करते हुए व्यासपीठ से श्री श्री राधेश्याम व्यास जी द्वारा बताया कि सद्गुरु शिव के समान होता है जैसे शिवलिंग की पूजा के बाद ही मूर्ति की पूजा की जाती है वैसे ही सद्गुरु के भी शिवलिंग की पूजा होती है सद्गुरु के सीधा पांव के अंगूठे के नीचे का हिस्सा सदगुरु महाराज के शिवलिंग कहलाता है कभी भी सद्गुरु के दोनों चरणों को नहीं धोना चाहिए सर्वप्रथम सद्गुरु को आसन पर बैठना चाहिए फिर सीधे पांव के अंगूठे के नीचे तांबे का पात्र रखकर जल अर्पण करना चाहिए , लक्ष्मी बीज भंडार के साहू परिवार द्वारा आयोजित शिवमहापुराण की कथा में असज पंचम दिवस के प्रवचन पर बताया कि सनातन धर्म का न आदि है न अंत है , जिसे परमात्मा ने सृष्टि निर्माण के पहले बनाया है , यह श्रेष्ठ धर्म है , मेरा प्रयास और आपका अभ्यास ही आपकी समस्या का त्रास करेगा , सनातन धर्म को किसी मानव या किसी दानव ने या किसी ऋषि मुनि ने नही बनाया , यही एक ऐसा धर्म धर्म है जहाँ फंसना नही और भटकना नही पड़ता , इसी धर्म के दवारा मात्र एक लोटा जल चढ़ाकर शिव जी को प्रसन्न किया जा सकता है , ये वो धर्म है जो निराकार और साकार दोनो को मानता है , पशु पक्षी को भी पूजता है , पेड़ पौधे को भी पूजता है , हजारों की संख्या में शिवमहापुराण के पंचम दिवस व्यासपीठ से महन्त श्री श्री राधेश्याम जी व्यास ने कहा कि सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार पाँच प्रकार के शिवलिंग बताए गए हैं जो धरती में प्रकट होता है उसे स्वंयम्भू शिवलिंग , जो शिवलिंग तसवीर में है उसे बिंदु शिवलिंग कहते है , जो छोटे छोटे मिट्टी के या चांदी के या पारे के शिवलिंग एक जगह से दूसरे जगह ले जाया जानेवाले शिवलिंग को चल शिवलिंग ,किसी मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हुए शिवलिंग को प्रतिष्ठित शिवलिंग कहते हैं , और जिसे सद्गुरु बनाओ उसके दाँये पाँव के अंगूठे को गुरु शिवलिंग कहते हैं ,सुखी बसे संसार सब दुखिया रहे न कोई यह अभिलाषा हम सबकी भगवन पूरी होय पाप से हमे बचाइए करके दया दयाल अपना भक्त बनाए के कर दो हमे निहाल भजन ने सबको मंत्र मुग्ध कर दिया , आज पंचम दिवस की कथा में पूर्व सांसद चन्दू लाल साहू , नगर पालिका उपाध्यक्ष सुरेंद्र सोनटके , पार्षद टिंकू ठाकुर , केशव साहू हरीश भाई ठक्कर सहित गरियाबंद नगर के आस पास के गॉंव के हजारों श्रोताओ उपस्थित थे।

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