पुलिस लाइन कारली के पीछे जंगल भूमि पर पुलिसकर्मी अतिक्रमण कर बना रहे मकान
दंतेवाड़ा । एक ओर देश भर के अलग अलग प्रदेशों में वहां की सरकारें सरकारी व जंगल की जमीनों पर अवैध अतिक्रमण के खिलाफ बुलडोजर अभियान चलाकर भू माफियाओं के खिलाफ जबरदस्त कार्यवाई कर यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि सरकारी जमीनों पर किसी भी कीमत पर अतिक्रमण नहीं होने दिया जाएगा तो वहीं छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जिले में नक्सल पीडि़त बताकर जंगल की तथा राजस्व की जमीन पर अवैध रूप से अतिक्रमण कर मकान बनाने का खेल वर्षो से चल रहा है । नक्सल पीडित का ठप्पा लगाकर जहां चाहे वहां अतिक्रमण किया जा रहा है और प्रशासन जांच के नाम पर खानापूर्ति कर मामले को ठंडे बस्ते में डाल सरकारी जमीनों को अतिक्रमण होते देख रही है। ऐसा ही एक मामला दंतेवाडा जिले के पुलिस लाइन कारली के पीछे स्थिति जंगल क्षेत्र में देखने को मिला है जहां कोई और नहीं बल्कि स्वयं पुलिस विभाग में कार्यरत पुलिस कर्मी के लोग ही अतिक्रमण कर जमीनों पर मकान तान रहे हैं। पंचायत एवं गांव के ग्रामीण लिखित में शिकायत कर रहे हैं वन विभाग एवं राजस्व अमला को कि अतिक्रमण को रोका जाए मगर राजस्व अमला हो या वन विभाग कोई भी इस मामले में ठोस कारवाई करते नहीं दिख रहा। जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति कर मामले को तहसील में लंबित है कहकर टाला जा रहा है जबकि अतिक्रमण पर तत्काल कारवाई की जाने की आवश्यकता है। राजस्व अमले ने तो जांच भी किया है मगर वन विभाग ने अभी तक इस मसले पर कोई सख्त जांच करवाई नहीं की है। बता दें कि पुलिस लाइन कारली के पीछे स्थित जंगलों में अतिक्रमण कर जंगलों को काटकर अवैध रूप से 4-5 मकानें बनाई गई है । मकान बनाने वाले कोई और नहीं बल्कि पुलिस कर्मी ही हैं जो पहले नक्सल पीडित थे बाद में इन्हें एसपीओ बनाया गया। सलवा जुडूम के समाप्त होने उपरांत इन्हें एसपीओ से सहायक आरक्षक नाम दिया गया ये लोग अंदरूनी नक्सल क्षेत्र से आते हैं। बस इसी बात का फायदा उठाते ये पुलिस कर्मी अतिक्रमण कर रहे हैं और अपने को नक्सल पीडित बताकर प्रशासन के लोगों से उन्हें जगह से नहीं हटाने की गुहार लगा रहे हैं। प्रशासन भी नक्सल पीडित के नाम पर इस मामले में कोई कारवाई नहीं कर मामले को ठंडे बस्ते में डाल मूकबधिर बन बैठी है। अब सवाल यह कि क्या नक्सल पीडितों को मनमुताबिक किसी भी जगह पर अतिक्रमण कर मकान बनाने की छूट शासन से मिली है? बताते चलें कि नक्सल पीडितों को सरकार ने बकायदा उन्हें मकान बनाकर रहने को दिया हुआ है। पुलिस लाइन में भी नक्सल पीडितों के लिए आशियाने बने हुए हैं। नक्सल पीडित के नाम पर करोडों का बजट भी सरकार देती है। मगर यहां तो जिन लोगों ने जंगलों में कब्जा किया है उन्हें तो सरकार ने नौकरी दे रखा है उन्हें अच्छी खासी सैलरी भी मिल रही है फिर वे किस तरह से नक्सल पीडित हुए? कारली पंचायत के ग्रामीणों ने अप्रैल माह में इसकी शिकायत तहसीलदार से किया था जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति की गई है और आज भी अवैध मकानों को हटाया नहीं गया है। गांव के ग्रामीणोंं का कहना है कि अगर प्रशासन जल्द इस पर कारवाई नहीं करती है तो आने वाले समय में अतिक्रमणकारियों की संख्या में और ज्यादा वृद्धि होगा और पंचायत यह कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। पंचायत ने दो टूक कहा है कि वे अपने गांवों की सीमा में किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं होने देंगे । आवश्यक हुआ तो राजस्व एवं वन मंत्री तक इसकी शिकायत की जाएगी।