श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन सभी ने भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव उत्साह और उमंग के साथ मनाया
महासमुंद ।पं. श्री रामप्रताप शास्त्री जी महाराज नेनंद बाबा के घर पर उत्सव के माहौल का सुंदर वर्णन करने के साथ आयोजन स्थल का पूरा माहौल भी नंदोत्सव के रंग में पूरी तरह से रंग गया.नंद के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल के उद्घोष के साथ समूचा आयोजन परिसर गूंज उठा द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का आनंद मानो फिर से महासमुन्द में जीवंत कर दिया.भक्तों ने भजनों की धुनों पर मगन होकर थिरकते हुए श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का आनंद उजागर किया श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव का आनंद मनाते हुए भक्तों के बीच खूब मिठाई, टॉफीयां और बधाईयां बांटी गयी. कथा प्रसंग में शास्त्री जी ने कहा कि भगवान युगों-युगों से भक्तों के साथ अपने स्नेह रिश्ते को निभाने के लिए अवतार लेते आये हैं.श्री शास्त्री जी ने कहा कि भगवान अपने भक्तों के भाव और प्रेम से बंधे है. उनसे भक्तों की दुविधा कभी देखी ही नहीं जाती. वे अपने भक्तों की कामना की पूर्ति तो करते ही है साथ ही उनके साथ अपने स्नेह बंधन निभाने खुद इस धरा पर आते हैं कथा के दौरान श्री शास्त्री जी ने वामन अवतार, समुंद्र मंथन, श्री राम जन्मोत्सव और भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का सुंदर और भाव पूर्ण वर्णन किया. शास्त्री जी ने कहा कि भगवान अपने भक्तों के साथ सदा हर पल खड़े रहते हैं. वे भक्तों के हाथों से दी प्रेम और भाव के साथ दी गई वास्तु उसी तरह ग्रहण करते हैं, जिस तरह से उन्होंने द्रौपदी का पुकार और गजेंद्र का पुष्प ग्रहण किया. भगवान ने काल रुपी मकर से भक्त गजराज की रक्षा की तो द्रौपदी के पुकार पर उसका संकट मिटाने स्वयं दौड़े चले आये.यह सारी कथाएं ये प्रमाणित करती हैं कि भक्तों के भाव से सदा बंधे रहनेवाले भगवान भक्तों के साथ अपना स्नेह निभाने खुद आते हैं. ठाकुरजी सिर्फ यह कभी नहीं चाहते कि उसके भक्त के पास अहंकार रहे. ठाकुरजी अपने भक्त से ये भी कहते हैं कि मुझे, वो वस्तु अर्पित कर, जो मैंने तुझे कभी नहीं दी. ठाकुरजी कहते हैं- ऐसी कोई वस्तु जो मैंने तूझे नहीं दी, वह अहंकार है. यह मैंने तूझे नहीं दिया. बल्कि तूने खुद इसे अपने भीतर तैयार किया है. शास्त्री जी ने कहा भगवान को अगर पाना है तो मन में इस भाव को बसा लेना होगा कि मेरा सब कुछ मेरे ठाकुरजी है. मेरे पास अपना कुछ भी नहीं जो कुछ भी है सो मेरे ठाकुर जी का ही है. गजेंद्र मोक्ष पाठ की महिमा बताते हुए कहा कि जो भी यह पाठ करता है. उस पर ठाकुरजी की कृपा सदा बनी रहती है. संकट उस पर सपने में भी नहीं आते. माता-पिता के चरण पकड़ लो, किसी और की चरण वंदना की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी. जीवन में सब कुछ जरूरी है पर एक मर्यादा के अंदर सभी हो तो तभी तक सब ठीक है. श्री शास्त्री जी ने समुंद्र मंथन से जुड़ी कई रोचक कथाएं सुनाईं. उन्होंने कहा कि अहंकार बुद्धि और ज्ञान का हरण कर लेता है. ठीक उसी प्रकार जैसे अहंकार से ग्रसित दानवों ने समुंद्र मंथन के समय बासुकी नाग के मुख को पकडऩा श्रेयस्कर समझा और भगवान के मोहिनी रूप पर मंत्र मुग्ध हो उठे.भगवान के वामन अवतार को तीन कदम आश्रय स्थली दान में देने के बाद राजा बलि को पाताल लोक की शरण लेनी पड़ी. इसलिए कुछ भी करो, सोच समझ कर करो, जो कुछ भी तोल-मोल कर बोलो. मीठा और मधुर बोलो.