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छत्तीसगढ़

पितरों के प्रति श्रद्धा का महापर्व है पितृपक्ष

दंतेवाड़ा । पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने, उनका स्मरण करने और उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त करने का महापर्व है। पितृपक्ष पर पितृगण इंतकाल हुए अपने परिजनों को याद करते हैं पितरों को तर्पण देते हैं और मोक्ष की कामना करते हैं। पितृपक्ष इसी माह के आखरी दिन यानि 30 सितंबर 2023 दिन शनिवार से प्रारंभ हो रहा है जो 14 अक्टूबर दिन शनिवार-पितृ मोक्ष अमावस्या को समाप्त होगा। पितरों की शांति के लिये हर वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें। पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व पितृपक्ष आज भाद्रपक्ष पूर्णिमा से प्रारंभ हो गया है। आश्विन अमावस्या की प्रतिप्रदा से अमावस्या तक पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। ब्रम्ह पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राहमणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड के रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है। पितृपक्ष के दौरान पितरों के निमित्त विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है उसे श्राद्ध कहते हैं। 30 सितंबर से श्राद्धपक्ष प्रारंभ होगा जो 14 अक्टूबर तक रहेगा। श्राद्ध पक्ष सोलह दिनों का होता है जिसमें हिन्दूजन अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। इन 15 दिनों में अपने पितरों का विधि अनुसार श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर अनुष्ठाता की आयु बढ़ा देते हैं साथ ही धन, धान्य, पुत्र, पौत्र तथा यश प्रदान करते हैं। पंडितों के अनुसार जिस कर्म विशेष में दुध, घृत, तथा मधु से युक्त सुसंस्कृत उत्तम व्यंजन को श्रद्धापूर्व पितरों को भेंट किया जाए, वही श्राद्ध है। ज्योतिष मान्यताओं के आधार पर सूर्यदेव जब कन्या राशि में गोचर करते हैं तब हमारे पितर अपने पुत्र पौत्रों के यहां विचरण करते हैं। विशेष रूप से वे तर्पण की कामना करते हैं। श्राद्ध से पितृगण प्रसन्न होते हैं। पितरों को तर्पण करने से हर प्रकार के कष्ट और बाधा से भी मुक्ति मिलती है। पितृगण श्राद्ध करने वालों को सुख समृद्धि सफलता आरोग्य और संतान रूपी फल देते हैं। पंडितों के अनुसार कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिये हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रूष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौवों को दिया जाता है। पितृपक्ष में गरीबों और ब्राम्हणों को भी अपने सार्मथ्यनुसार दान करना चाहिए। इस दौरान शुभ व कोई नए कार्य की शुरूआत नहीं करना चाहिए। पूरे पितृपक्ष के दौरान पितृस्त्रोत का पाठ करना अति उत्तम माना गया है।

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