https://tarunchhattisgarh.in/wp-content/uploads/2024/03/1-2.jpg
Uncategorized

विलुप्ति के कगार पर खड़ी संकटग्रस्त देवार संस्कृति को आज सहेजने की आवश्यकता है: चित्तरंजन कर

महासमुंद। नगर के स्वामी आत्मानंद विद्यालय सभागार में विश्व संगीत दिवस पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। लुप्तप्राय देवार गीत पर केन्द्रित व्याख्यान का आयोजन भारतीय सांस्कृतिक निधि इन्टैक महासमुंद अध्याय के संयोजन में हुआ। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ी लोक गायन परंपरा में देवार समुदाय का योगदान विषय पर विद्वान वक्ताओं ने प्रकाश डाला।स्थानीय मालधक्का पारा निवासी धाकड़ देवार द्वारा रुंजु की सुमधुर तान के साथ प्रस्तुत देवार गीत की जमकर सराहना हुई। रूंजु वाद्य के साथ देवार गीत गायन कला विरासत को संजोकर रखने वाले जिले के एक मात्र साधक कलाकर धाकड़ देवार को अतिथियों ने गरिमामय वातावण में गुलदस्ता,फुलमाला,धोती,कुर्ता,गमछा,स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।
इन्टैक के छत्तीसगढ़ संयोजक अरविंद मिश्रा ने की। विशिष्ट अतिथि श्रीमती माधुरी कर,सुनील बघेल रायपुर थे। इस अवसर पर साहित्यकार डॉ. चित्तरंजन कर ने कहा कि देवार उच्च कोटि के ओझा (बैगा) हैं। ग्राम देवता के पुजारी देवार को माना गया है। इनमें दैवज्ञ, अदृश्य को देख लेने की अद्भुत क्षमता होती है। ये लोग प्रकृति से जुड़े हैं। उन्होंने देवारों के बारे में बताया कि ये ग्राम देवता में दीया जलाने वाले लोग थे। इनकी जाति देवार से ही देवारी शब्द की उत्पत्ति हुई है, जिसे हम दीपावली के नाम से भी जानते हैं। उन्होंने आगे कहा कि भीख मांगने वाले देवार को जोगी देवार के नाम से जाना जाता है। इनकी संख्या अब लुप्त हो गई है। आकाशवाणी रायपुर से चिंताराम देवार ने पहला देवार गीत कार्यक्रम 60 के दशक में प्रस्तुत किया। लोकगायन की शुरुआत देवार समुदाय ने ही किया। ये देवज्ञ, गंधर्व व आरण्यक हैं। इनकी कला प्रणाम करने योग्य हैं। उन्होंने कहा कि देवार संस्कृति को संरक्षित करने की आवश्यकता है, यदि संस्कृति नहीं रहेगी तो संस्कार नहीं रहेगा।
उन्होंने आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि यह आयोजन नहीं है, सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण है। बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता है। आज देवार संस्कृति संकट ग्रस्त है, विलुप्त होने के कगार पर है। इसे बचाने की आवश्यकता है। हमने इनकी कला को मनोरंजन का साधन मानकर बड़ी भूल की है। कला मात्र मनोरंजन का साधन नही,मनुष्य को मनुष्य बनाती है।इस अवसर पर इन्टैक के छत्तीसगढ़ संयोजक अरविंद मिश्रा ने कहा कि देवार यायावर (घुमंतु) हैं । प्रकृति से जुड़े हुए वर्ग हैं। ये पक्का मकान में रहना पसंद नहीं करते हैं। सुअर पालन यूरोप में विश्व का सबसे बड़ा व्यापार है। यदि प्रोत्साहित किया जाए तो यहां देवारों की स्थिति सुधारने में मदद मिल सकती है। टैटू आज 5 हजार करोड़ रुपये का वैश्विक कारोबार है। छत्तीसगढ़ में गोदना आयोग बनाने की जरूरत है। जिससे इस परंपरागत कला को संरक्षित किया जा सके। विश्व का सबसे कठिन वाद्य यंत्र वायलिन को माना जाता है, यह देवारों की रुंजु से विकसित हुआ है। जिसे देवार बहुत सरलता से बजाते हैं। देवारों की संस्कृति को बचाने का प्रयास होना चाहिए। इसके लिए संगीत विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम प्रारंभ करने की जरूरत है। उपस्थित जनों को श्रीमती माधुरी कर ने भी संबोधित किया।
स्वागत उद्बोधन में संयोजक दाऊलाल चन्द्राकर ने कहा कि देवार संस्कृति विलुप्तपाय है। ऐसी धरोहरों के संरक्षण व संवर्धन के लिये इन्टैक प्रतिबद्ध है ।इसी उद्देश्य को लेकर देवार गीत केन्द्रित आज का यह कार्यक्रम इन्टैक द्वारा आयोजित है। उन्होंने देवार संस्कृति के संरक्षण की दिशा में चंदैनी गोंदा मंच के माध्यम से दाऊ रामचंद्र देशमुख के प्रयास का विशेष रूप से उल्लेख किया संचालन रूपेश तिवारी व आभार ज्ञापन राजेश्वर खरे ने किया।कार्यक्रम को सफल बनाने में सरायपाली-सारंगगढ़ संयोजक यशवंत चौधरी,अशोक शर्मा,डॉ. रामगोपाल यादव,डॉ. विजय मिश्रा, रघुनाथ सिन्हा,मानक नामदेव का सराहनीय योगदान रहा।इस बीच इन्टैक द्वारा मूर्त-अमूर्त विरासत के संरक्षण व संवर्धन के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया गया।

जिनमें हेमेन्द्र आचार्य,प्राचार्य स्वामी आत्मानंद हिन्दी उत्कृष्ठ विद्यालय,भागवत जगत भूमिल काव्यांश,नरेश साहू व लोकनाथ साहू दिशा नाट्यमंच,धनराज साहू, हबीब समर,लोक कलाकर संरक्षण समिति बागबाहरा प्रमुख हैं।इस अवसर पर प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष आनंद पत्रकारश्री, सालिक राम कन्नौजे,पूर्व प्राचार्या एवं कवियित्री डॉ. साधना कसार,कुबेर गिरी गोस्वामी प्राचार्यं देव संस्कृति विद्यालय,रामकुमार साहू जिला सचिव भारत स्काउट गाईड,बी. आर. साहू, सुरेन्द्र मानिकपुरी,रंगकर्मी डॉ. विकास अग्रवाल राजनांदगांव,लोक गायक नूतन भट्ट बलौदाबाजार,सहित साहित्य, कला, नाट्यमंच, शिक्षा जगत से जुड़े विशिष्टजन बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

Related Articles

Back to top button