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छत्तीसगढ़

पशुधन विभाग की सुस्त कार्यप्रणाली के चलते बीमार पशुओं का नहीं हो रहा ईलाज

दंतेवाड़ा । दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में स्थित पशुधन विभाग केवल नाम का रह गया है इस विभाग में कागजी तौर पर भले ही काम होते हों मगर जमीनी स्तर पर विभाग में पदस्थ डॉक्टर कोई काम नहीं कर रहे। पूरा विभाग वेंटीलेटर पर है। नतीजतन जिले में बीमार व घायल, चोटिल पशुओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। सरकार ने पशुओं की त्वरित चिकित्सा व्यवस्था के लिए मोबाइल मेडिकल चलित वाहन की व्यवस्था भी कर रखा है ताकि कॉल पर चलित वाहन मौके पर पहुंच गौ माताओं की बेहतर चिकित्सा व्यवस्था कर सके मगर इस चलित वाहन का भी कोई फायदा होता नहीं दिख रहा। वाहन में केवल सरकारी डीजल ही फूंकी जाती है इसका कितना सही इस्तेमाल हो रहा है इसकी भी जांच जांच निगरानी होनी आवश्यक है। गौरतलब है कि दंतेवाड़ा जिले के कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी जब दंतेवाड़ा में बतौर कलेक्टर पदस्थ हुए थे तब वे पहली बार जब जिले के पत्रकारों से भेंटवार्ता किए थे उसी भेंटवार्ता के दौरान ही पत्रकारों ने पशुधन विभाग की लचर, सुस्त एवं खराब कार्यप्रणाली को लेकर चिंता जताते कलेक्टर सर से इसे दुरूस्त करने की बात कही थी साल बीतने को हैं मगर पशुधन विभाग की कार्यप्रणाली में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा बल्कि और भी ज्यादा खराब हो गई है। आलम यह कि जिला मुख्यालय में हर चौक चौराहों पर, सड़कों पर ईधर उधर घिसट-घिसटकर रेंगते, खूरों में कीडे लगे, खूर बढ़े हुए, जख्मी हालत में लंगडाते घिसडते कई गाय बैलों को साफ तौर पर देखा जा सकता है इन बेजुबानों के इलाज की जिम्मेदारी आखिर किसकी है्? क्यों पशुधन विभाग की मोबाइल मेडिकल चलित वाहन इन्हें देखकर इनका इलाज नहीं करती? विभाग में पदस्थ डॉक्टर क्यों पशु औषधालय लेजाकर इनका उपचार नहीं करते? विभाग की अकर्मण्ता के चलते ग्रामीण क्षेत्र के पशुपालक हों या शहरी क्षेत्र के दोनों को ही इसका खामियाजा उस दौरान भुगतना पड़ता है जब उनके गायें बीमार हो जाती है। पशुधन विभाग के कई चक्कर लगाने के बाद भी डॉक्टर बीमार गायों को देखने उनका इलाज करने घर पर नहीं आते। बमुश्किल कोई डॉक्टर आ भी गया तो देख पड़ताल कर बगैर इलाज किए ही चला जाता है। पशुधन विभाग बीमार पशुओं के इलाज को लेकर किस कदर लापरवाह है इसका जीता जागता उदाहरण अभी हाल में ही देखने को मिला है जब शहर के ही एक पशुपालक की जर्सी गाय थनैली रोग से ग्रसित हो गई पशुपालक ने डॉ0 रजक को फोन कर बुलाया। डॉक्टर आए देखे और बाद में पूरे इंतजाम के साथ आता हूं कहकर चले गए और दुबारा नहीं आए। परेशान पशुपालक ने जैसे तैसे बचेली में पदस्थ पशुधन विभाग के डॉक्टर राहुल मंडावी से संपर्क साधा । डॉ0 श्री मंडावी पशुपालक के घर पहुंचे और बीमार गाय को देखा, उनका इलाज किया, इंजक्शन लगाया, ड्रिप चढ़ाया, थन में जमे गंदे खून, को सीरिंज से बाहर निकाला तब कहीं जाकर गौ माता एक हफते बाद अपने पैरों पर खड़ी हो पाई और उसने थोड़ा दाना चारा भी खाया। ये हाल जिला मुख्यालय में पशुधन विभाग का है। विभाग केवल नाम का ही रह गया है। बीमार पशुओं के इलाज के लिए जब भी किसी डॉक्टर को फोन किया जाता है तो डॉक्टर कोई ना कोई बहाना बनाकर आने से बचने का प्रयास करते हैं। आए दिन सड़कों पर जानवर हादसे का शिकार हो रहे हैं। घायल जानवर सड़कों पर ही तड़प तड़प कर मर जाते हैं । पशुओं को समय पर इलाज नहीं मिल पाता। समय पर इलाज न मिलने के वजह से अब तक कितने ही पशुओं की मौतें हो चुकी है।

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