माताओं ने रखा जिऊतिया व्रत, शीतला मंदिर में की सामूहिक पूजा
दंतेवाड़ा । जीवित्पुत्रिका पर्व के पावन अवसर पर आज नगर की महिलाओं ने जिऊतिया व्र्रत रखकर विधि विधान से भगवान जीमुतवाहन की पूजा अर्चना कर अपने अपने संतानों की लंबी उम्र, उनके अच्छे स्वास्थ्य व सुख समृद्धि की कामना की। उक्त अवसर पर व्रतधारी महिलाओं ने शीतला माता मंदिर में सामुहिक पूजा कर भगवान की कथा श्रवण किया। व्रत का पारण गुरूवार सुबह किया जाएगा। गौरतलब है कि हर वर्ष आश्विन मास की कृष्ण की अष्टमी तिथि पर जितिया व्रत रखा जाता है इसे जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। जिउतिया व्रत, पूजन आज 25 सितंबर दिन बुधवार को रखा गया है। जिउतिया पर्व तीन दिवसीय होता है जो आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमीं तिथि तक मनाया जाता है। यह पर्व विशेषकर बिहार व झारखण्ड में मनाया जाता है। वहीं अब धीरे धीरे देश के अन्य प्रदेशों में भी इसे मनाया जाने लगा है। संतानों की मंगलकामना, लंबी आयु तथा सुख समृद्धि के लिए जिउतिया व्रत महिलाएं करती हैं। माताएं इस दिन 24 घंटे का निर्जला व्रत रखकर भगवान जीमूतवाहन का विधिवत पूजा अर्चना करती है। बुधवार अष्टमी तिथि पर आज जिउतिया व्रत पूजा के अवसर पर नगर की महिलाएं हर वर्ष की भांति इस साल भी शाम को शीतला माता मंदिर में सामुहिक रूप से एकत्र हुई व एक साथ बैठकर भगवान जिमूतवाहन की पूजा-अर्चना की और फिर चिलो-सियार की कथा श्रवण किया। व्रतधारी माताएं व्रत का पारण नवमीं तिथि को सूर्योदय के बाद मडूआ आटा से बनी रोटी को खाकर करेंगी। व्रत के पारण के बाद महिलाएं सोने की लॉकेट (गुजिया आकार का) लगे लाल रंग का धागा पहले अपने पुत्र पुत्रियों को पहनाती हैं और बाद में उसे अपने गले में धारण करती हैं। जीवित्पुत्रिका या जिउतिया पर्व की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। कथा इस प्रकार है कि महाभारत के युद्ध के बाद अश्वथथामा बहुत क्रोध में था। वह अपने पिता की मृत्यु का पांडवों से बदला लेना चाहता था। एक दिन उसने पांडवों के शिविर में घुसकर सोते हुए पांडवों के बच्चों को मार डाला। उसे लगा था कि ये पांडव हैं लेकिन वो सब द्रोपदी के पांच बेटे थे। इस अपराध की वजह से अर्जून ने उसे बंदी बना लिया और उसकी मणि छीन ली। इससे आहत अश्वथथामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रम्हास्त्र का प्रयोग कर दिया। लेकिन उत्तरा की संतान का जन्म लेना जरूरी था। जिस वजह से श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की गर्भ में मरी संतान को दे दिया और वह जीवित हो गया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से गर्भ में मरकर जीवित होने के वजह से इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। यही आगे चलकर राजा परीक्षित बने। तभी से संतान की लंबी उम्र के लिए हर साल जिउतिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जा रहा है।