माहे-रमजान में इबादत का दौर जारी, बड़ों के साथ बच्चे भी रख रहे रोजा
भिलाई । रमजान के इस मुबारक महीने में रोज़ा-अफ्तार के साथ इबादत का दौर जारी है। नौजवानों और बड़े-बुजुर्गों के साथ बच्चों में भी रोजा रखने का हौसला बरकरार है। इस्लाम में हर इबादत बालिग होने पर फर्ज हो जाती है जिसको पूरा करना जरूरी होता है। औरतों के लिए भी रमजान माह में दिनचर्या बदल गई है। कुरान की तिलावत करना,शाम के वक्त इफ्तार तैयार करना, आधी रात पूरी होने पर सहरी बनाने की तैयारी करना फिर पांच वक्तों की नमाज़ पढऩा होता है। जिसमें घर की औरतें मसरूफ रहती हैं। खुर्सीपार जोन 3 की गजाला कुरैशी बताती है कि अल्लाह रोजेदार के लिए जो अर्ज रखा है उसका यकीन फर्ज को पूरा कराता है। 11 महीने खाए पिए है एक माह अल्लाह की रज़ा के लिए कुछ भूखा प्यासा रहना चाहिए। रूआबांधा निवासी आरिफा इकबाल कहती हैं रोजा हर बालिग मोमिन मर्द ओर औरतों पर फर्ज है। अल्लाह के नबी सल्ललाहो अलैहि वसल्लम का फरमान है जिसका खुलासा है कि रोजे का बदला अल्लाह ख़ुद अता फऱमाता है। सेक्टर 11 खुर्सीपार निवासी नफीस असलम बताती है जितना सवाब मर्दों को मिलता है उतना ही औरतों को घर पर रहकर इबादत करने,नमाजे तरावीह पढऩे, तिलावते कुरआन में, अल्लाह के जिक्र अजकार में और दरूद शरीफ पढऩे में मिलता है। जितना वक्त मिले उसको इबादत में लगाना चाहिए। जोन 2 निवासी शन्नो खालिद जमाल,नूर अस सबा, रिजवाना जुनैद, सोनी मजहर ओर इंजीनियर श्रीमती सबा कुरैशी बताती है दर हक़ीक़त रोजा इस्लाम के अरकान में से एक अहम अरकान फज़ऱ् है। बिला उज्र (वास्तविक कारण) के बिना रोजा नहीं छोडऩा चाहिए। इंजीनियर कहकशां अंजुम कहती हैं नौजवानों को भी सावधानी बरतनी चाहिए। बिना वजह धूप में घूमने या गपशप करने बिना मतलब की बातें जिसमें ना दुनिया का फायदा है और ना आखिरत का फायदा इससे बचना चाहिए।