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खेल – मनोरंजन

तलवारबाज तैयार करना दूरदर्शी निर्णय

तलवारबाजी, एशियाई चैंपियनशिप 2023, भारत की भवानी देवी ने रचा इतिहास

जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में तलवारबाजी (फेंसिंग) को एक स्थायी खेल का दर्जा दिया गया है। इक्कीसवीं सदी के आरंभ से हमारे देश में सभी 28 कोर ओलंपिक खेलों में अपना प्रतिभागी उतारने की कोशिश आरंभ हुई। नई दिल्ली में सम्पन्न 19वें राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के बाद तलवारबाजी को भारतीय खेल परिदृश्य में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया। पिछले करीब एक दशक से यह खेल भारत के युवाओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। केंद्र सरकार की खेलनीति खेलो इंडिया, टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (टाप्स), टेलेंट सर्च आदि योजनाओं के माध्यम से तलवारबाजी को लोकप्रिय बनाया जा रहा है। सब जूनियर, जूनियर, युवा, महिला, पुरुष सीनियर वर्ग में जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा आरंभ की गई। इसका परिणाम स्पष्ट रूप से हमारे सामने है। 15 अगस्त 1947 से स्वतंत्रता के पश्चात किसी भारतीय तलवारबाज ने ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों के लिए योग्यता हासिल नहीं किया था लेकिन चेन्नई तमिलनाडु की 29 वर्षीय सीए भवानी देवी को 2020 के टोक्यो ओलंपिक के लिए साबरे वर्ग में खेलने की पात्रता मिल गई। ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाली भवानी देवी पहली फेंसर बनी जो कि प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व की बात है। ओलंपिक खेलों के इतिहास पर नजर डालने से स्पष्ट है कि तलवारबाजी की प्रतियोगिता 1896 से आरंभ आधुनिक ओलंपिक खेलों में अब तक लगातार शामिल रहा है। महिला-पुरुष वर्ग में व्यक्तिगत ईपी, व्यक्तिगत फाइल, व्यक्तिगत साबरे तथा टीम साबरे के चार-चार मुकाबले 2024 के पेरिस ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों के लिए तय है। इस तरह फेंसिंग इवेंट में 8 स्वर्ण, 8 रजत, 8 कांस्य पदक सहित कुल 24 पदकों का बटवारा होता है। अत: यह स्वीकार किया जा सकता है कि भारत में तलवारबाजी में खिलाड़ी तैयार करना न सिर्फ जरूरी है बल्कि लाभप्रद भी है। भारत में खेलकूद को जन जन तक पहुंचाने के लिए 2014 के पश्चात जो कोशिश की जा रही है वह न सिर्फ उचित परंतु सटीक भी है। इस दिशा में भारतीय तलवारबाजी संघ ने भारतीय ओलंपिक संघ व भारतीय खेल प्राधिकरण के साथ मिलकर शानदार प्रयास आरंभ किया है। अत्याधुनिक प्रशिक्षण केंद्र, अनुभवी प्रशिक्षकों, आधुनिक खेल सामग्री के साथ तलवाबाजी में जिस तरह कठोर परिश्रम व अनुशासन के साथ तलवारबाजों को तैयार किया जा रहा है जिसके लिए दूरदर्शिता की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। तलवारबाजी का खेलकूद जगत में विशेष महत्व है क्योंकि यह साहस, चतुराई और त्वरित निर्णय लेने का खेल है। भारत की चंदालावदा आनंद सुंदरमणन भवानी देवी ने अपने अचूक निशाने और कुशलता के दम पर एशियन चैंपियनशिप में कांस्य पदक प्राप्त करके न सिर्फ हमारे देश का सम्मान बढ़ाया बल्कि भारत के युवा पीढ़ी के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करके संदेश दिया है कि नये खेलों की ओर ध्यान लगाओ, मेहनत करो जिससे भारत को अन्य खेलों में भी विश्व मंच में जगह मिल सके। भारत सरकार के खेल विभाग, भारतीय खेल प्राधिकरण के लिए यह निश्चित रूप से प्रसन्नता का क्षण है जब तलवारबाजी में सुव्यवस्थित प्रशिक्षण व खिलाड़ी के खेल मैदान में पसीना बहाये जाने का परिणाम अंतर्राष्ट्रीय खेल मंच पर सीए भवानी देवी जैसे अत्यंत प्रतिभाशाली तलवारबाज द्वारा पदक प्राप्त करना है। भवानी देवी की यह उपलब्धि निश्चित रूप से भारतीय युवाओं में संजीवनी का कार्य करेगी।

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