काले कारनामे आज नहीं तो कल आते हैं सामने
प्रतिबंधित दवा सेवन की पुष्टि होने पर भारत की संजीता चानू पर प्रतिबंध
– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
खेलकूद में राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विजेता बनने से ना सिर्फ खुद का नाम बल्कि प्रदेश व देश का नाम रौशन होता है। प्रत्येक खिलाड़ी की चाहत है कि वह अपने देश की ओर से विश्व स्तर की स्पर्धा में भाग ले और पदक प्राप्त करे। इसके लिए खिलाड़ी मैदान में लंबे समय तक पसीना बहाता है। 10 से 18 वर्ष की उम्र में जो कि दूसरे बच्चों, किशोरों के लिए घूमन-फिरने, मस्ती करने का दौर होता है तब वे एक खेल क्षेत्र में अपने आपको कैद कर लेता है। खेल की दुनिया में बड़ी उपलब्धि हासिल करना उनका उद्देश्य होता है। वे अनुशासन तथा समय की पाबंदी में बंधे होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी बनने और अपने देश के लिए इनाम जीतने की चाहत में अपने बचपन, किशोरावस्था को भूला देते हैं। अपने पसंदीदा खेल में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए सब कुछ त्याग देते हैं और सिर्फ खेल के नियम कानून, विजयी होने का तरीका जानने, समझने में जीवन को दांव पर लगा देते हैं। यह सब कुछ करके उन्हें राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जब सफलता मिलती है तो ना सिर्फ वह प्रतिभागी बल्कि पूरा देश, उनके अभिभावक, उनके प्रशिक्षक, चाहने वाले सभी उन पर गर्व करते हैं। लेकिन एक खिलाड़ी का जमीन से आसमान तक का सफर बेदाग होना आवश्यक है। पदक हासिल करना बड़ी उपलब्धि है लेकिन उससे भी बड़ी उपलब्धि पदक प्राप्त का तरीका, उस तक पहुंचने का मार्ग साफ सुथरा होना जरूरी है। हमारे देश में स्वर्ण, रजत या कांस्य पदक जीतने वाले ऐसे कई खिलाड़ी हैं जिन्होंने गलत राह पर चलकर, खेल का नियमों का उल्लंघन करके सफलता पाई। परंतु उनकी चतुराई पकड़ में आ गई वे प्रतिबंधित दवा का इस्तेमाल करके ऊंचाई पर पहुंचे इसलिए उनसे पदक छीन लिया गया। भारत के खेल इतिहास में इस तरह का दुष्कृत्य दूसरी बार करके पकड़ में आने वाली एक मात्र प्रतिभागी भारोत्तोलक संजीता चानू हालांकि पहली बार वह निर्दोष साबित हुई। संजीता इस दशक की प्रसिद्ध महिला भारोत्तोलक हैं। उन्होंने 2011 के एशियन चैंपियनशिप में कांस्य और कामनवेल्थ चैंपियनशिप में 2012, 2015, 2017 में तीन बार देश के लिए स्वर्ण पदक जीता है। इसके साथ ही 2014, 2018 के राष्ट्रमण्डल खेलों में भी उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया है।
प्रतिभाशाली संजीता को पहली बार 2017 में संयुक्त राज्य अमेरिका के एंटी डोपिंग एजेंसी ने एनाबोलिक स्टेराइड का सेवन करने का आरोप लगाया जिसके कारण 2018 में अंतर्राष्ट्रीय भारोत्तोलक फेडरेशन ने उन पर चार वर्षों का प्रतिबंध लगा दिया। संजीता ने इस आरोप पर अंतर्राष्ट्रीय भारोत्तोलन फेडरेशन से अपील की जिसमें उन्हें 2020 में पाक साफ घोषित किया गया। सितम्बर-अक्टूबर 2022 में गुजरात में सम्पन्न 36वें राष्ट्रीय खेलों में संजीता ने रजत पदक जीता। नियमानसुार उनका परीक्षण हुआ जिसमें उन्हें एक बार फिर से अप्रैल 2023 के पहले सप्ताह में एनएडीए द्वारा दोषी करार दिया गया। इस बार संजीता पर आरोप है कि उन्होंने ड्रोस्टानोलोन जो कि एक तरह का एनाबोलिक एंड्रोजेनिक स्टेराइड है वल्र्ड एंटी उोपिंग एजेंसी (वाडा) के द्वारा खिलाडिय़ों के सेवन के लिए प्रतिबंधित है। उल्लेखनीय है कि ड्रोस्टानोलोन एक ऐसी दवा है जिसको महिलाओं के स्तन के कैंसर को अधिक फैलाव हो जाने पर प्रयोग किया जाता है। इसके पश्चात संजीता चानू पर भारत की नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी नाडा ने चार वर्ष का फिर से प्रतिबंध लगा दिया है। इस तरह संजीता ने युवा खिलाडिय़ों के समक्ष एक गलत तरीके से प्रतियोगिता जीतने के उपाय को बताकर भारतीय खेल जगत को शर्मसार कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि हाल ही के दिनों में खेलकूद में प्रतिबंधित दवा के सेवन का मामला तेजी से बढ़ रहा है। पिछले वर्ष के ओलंपियन शिवपाल सिंह, कमलप्रीत कौर, धनलक्ष्मी सेकर और कामनवेल्थ में कांस्य पदक विजेता नवजीत कौर पकड़े गये और 2016 में पहली बार रियो ओलंपिक खेलों में भारत की तरफ से भाग लेने वाली महिला जिमनास्ट दीपा कर्मकार भी प्रतिबंधित दवा के सेवन में पकड़ी जा चुकी है। ऐसा कृत्य उचित नहीं है। इस पर लगाम लगाने के लिए संबंधित खेल के प्रशिक्षक व आहार विशेषज्ञों पर भी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।