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खेल – मनोरंजन

बचाना होगा बेटियों को मैदान छोडऩे की मानसिकता से

महिला पहलवानों का यौन शोषण: भारत में बढ़ती समस्या, हल निकालना ही होगा

– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
खेलकूद की दुनिया में एक दौर था जब सिर्फ पुरुषों को ही स्पर्धा में भाग लेने की अनुमति थी। प्राचीन यूनान, मि में महिला, पुरुष एथलीट की अलग-अलग पहचान स्थापित की गई। खेलों में महिलाओं के भाग लेने के संबंध में जानकारी 440 ईसा पूर्व होमेर के ओडिसी में पाया जाता है जब नदी किनारे ओडिसी पैदल चलकर आती है फिर महारानी नौसिका अपने महिला साथियों के साथ गेंद को खेलती है। इसके पश्चात ईसा पूर्व 396 में कनिष्का नाम की घुड़सवार जिक्र पहली बार आया है। उन्हें ओलंपिक खेल के रूप में घुड़सवारी में पहला पदक जीतने का श्रेय प्राप्त है। 1900 में पेरिस ओलंपिक में भाग लेने वाली पहली महिला स्वीट्जरलैंड की नाविका हेलेन डी पोर्टलेस थी और 22 मई 1900 को ओलंपिक खेलों में पहली पदक विजेता बनी। सिडनी 2000 में ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारत की भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी हैं। बाद में भारत की ओर से मुक्केबाज एमसी मेरीकाम, शटलर सायना नेहवाल, पीवी सिंधु और पहलवान साक्षी मलिक और टोक्यो 2020 में 49 किलोग्राम वर्ग में भारोत्तोलक मीराबाई चानू ने रजत जीता। बहुखेल स्पर्धा में प्रतिष्ठित ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में भारत की तरफ से सबसे पहले भाग लेने वाली महिला टेनिस खिलाड़ी नोरा पोल्ले हैं उन्होंने पेरिस के 1924 के ओलंपिक खेलों की टेनिस स्पर्धा के महिला एकल और मिश्रित युगल में सिडनी जेकब के साथ भाग लिया था। अर्थात् भारत में महिलाओं का खेलकूद में मुकाबला करने का इतिहास करीब सौ वर्ष का है। इस दौरान भारतीय महिला खिलाडिय़ों में से पीटी उषा, सानिया मिर्जा, अंजू बॉबी जार्ज ने अपने समय में भारत की तरफ से खेलते हुए देश का नाम रौशन किया है। लिंगभेद को समाप्त करते हुए ओलंपिक चार्टर में स्त्री व पुरुष खिलाडिय़ों को समान रूप से सभी खेलों की स्पर्धा में शामिल होने का निर्णय लिया गया। भारत में महिला सशक्तिकरण के नाम से महिलाओं को समाज के प्रत्येक्ष क्षेत्र में आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इसका परिणाम खेलकूद के क्षेत्र में सबसे ज्यादा देखने को मिला। अब तो भारत में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं कहीं अधिक अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। दुर्भाग्य की बात है कि एक ओर जहां अभिभावक अपनी बच्चियों को खेलकूद में शामिल होने के लिए उत्सुक है दूसरी तरफ लड़की या महिला खिलाउिय़ों के साथ यौन शोषण का मामला भी सामने आने लगा है। भारतीय कुश्ती महासंघ में इन दिनों पहलवानों तथा पदाधिकारियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की होड़ लगी है। अब तो मामला अदालत तक पहुंच गया है अत: महिला पहलवानों को अपने द्वारा लगाये गये आरोप के निपटारे के लिए इंतजार करना होगा। पहलवानों का अपनी हक की लड़ाई लडऩे के लिए जंतर-मंतर में धरना प्रदर्शन करना पड़ गया। इन सबकी वजह से पिछले कई महीनों से 2022 के एशियाई खेलों की तैयारी को छोड़कर पहलवान खुले आसमान के नीचे हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह मामला सिर्फ एक खेल का है अब तो हमारे देश की महिलाएं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करीब 40 खेलों में अपना दावा प्रस्तुत कर रही है। पहलवानों की आवाज चिंगारी से आग बनकर फैल गई तो आने वाले समय में भारत के खेल जगत को बड़ा नुकसान हो सकता है।
अगर अभिभावकों ने अपनी बेटियों को खेल के मैदान से हटाने का निर्णय ले लिया तो यह अपूर्णीय क्षति होगी। यौन शोषण की समस्या, आरोप से निपटने के लिए भारतीय ओलंपिक संघ, भारत सरकार, राज्य सरकारों को कठोर नियम बनाना चाहिए। फिर जो भी उसका उल्लंघन करे उसे उचित दंड देने का प्रावधान लागू करना होगा। अन्यथा खेल के मैदान में बेटियों का ना होना एक शर्मनाक घटना होगी। भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष सांसद भारत की महिला एथलीट पीटी उषा के लिए प्रभावकारी कदम उठाने का समय आ गया है। यौन समस्या का हल सिर्फ केंद्र, राज्य सरकार, खेल फेडरेशन आदि का नहीं है। सब मिलजुलकर खुले हृदय से सच्चाई को स्वीकार करने की हिम्मत से यौन शोषण की समस्या से मुक्ति मिल सकती है।

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