छत्तीसगढ़

गुरु घासीदास जयंती पर युवाओं ने निकाली बाइक रैली

पत्थलगांव । सतनाम समाज के महाप्रवर्तक गुरू घासीदास का जन्मउत्सव आज हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया,यहा के अंबेडकर नगर स्थित जैतखंभ के समीप सुबह के दौरान कलश स्थापना,चौका आरती,गायन-वादन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। दोपहर 12 बजे जयस्तंभ के समीप प्रसाद वितरण का कार्यक्रम आयोजित हुआ। 2 बजे सतनाम समाज के युवको ने बाईक रैली निकाली थी। दोपहर लगभग 4 बजे समाज के महिला पुरूष बच्चो की उपस्थिती मे शोभायात्रा निकाली गयी,शोभायात्रा यहा के अंबेडकर नगर स्थित जैतखंभ से निकाली गयी थी,जो शहर के प्रमुख तीनो रोडो मे भ्रमण कर वापस अंबेडकर नगर पहुंची थी,इस बीच यहा के इंदिरा चौक पर प्रगतिशील सतनामी समाज के युवको द्वारा आकर्षक पंथी नृत्य का आयोजन किया,जिसमे समाज के युवक सफेद वेशभूषा मे काफी आकर्षक लग रहे थे,युवको के अलावा समाज की नन्ही बालिकाओ ने भी इंदिरा चौक के समीप नृत्य की प्रस्तुति दी,देर शाम शोभायात्रा की वापसी के दौरान इंदिरा चौक पर आतिशबाजी का कार्यक्रम आयोजित हुआ। दरअसल हर वर्ष 18 दिसंबर को सतनाम समाज द्वारा गुरू घांसी दास जयंती बडे ही हर्षोउल्लास के साथ मनायी जाती है,जयंती के पूरे कार्यक्रम को सफल बनाने मे प्रगतिशील सतनाम समाज के दयाराम खूंटे,पी.आर.अजय,अर्जुन रत्नाकर,समारू नवरतन,संतोष टांडे,जनार्दन पंकज, सत्या मौर्य,विवेकानंद मिर्रे,जितेन्द्र बघेल,राजकुमार मिर्रे,बुधयारिन सोनी,अजय सोनी, देवेन्द्र पाल,कौशल नवरतन,श्याम सुदंर भारद्वाज, बुदकाराम धिरही,पुनीराम भार्गव, दिनेश मिर्रे,तुलसी टांडे,उमेश बघेल,मुकेश लहरे,विजय सक्सेना,मनोज महर्षि, अनिल टांडे,सुनील टांडे सहित सतनामी समाज के अन्य युवको की महत्वपूर्ण भूमिका रही।।
संशारिक कार्यों में नही लगता था मन-:गुरू घासीदास का जन्म 18 दिसंबर सन् 1756 को गिरौदपुरी के एक श्रमजीवी परिवार मे हुआ था। गुरू घासीदास के बारे मे कहा जाता है कि इनका मन प्रारंभ काल से ही घरेलु व सांसारिक कार्यो मे नही लगता था,,फिर भी उन्हे अपने पिता के साथ परिवारीक कार्यो के लिये परिश्रम करना पडता था। गुरूघासीदास ने सतनाम की शिक्षा गुरू बाबा जगजीवन दास से प्राप्त की। इसके पश्चात गुरूघासी दास कटक से लौटकर सोनाखान के बीहडवन मे जोंक नदी के किनारे तप करने लगे,जहा इनको सत्य की अनुभूति होते हुऐ सिद्धी प्राप्त हुई।।
समकालीन विचारो को किया प्रभावित-:गुरू घासीदास को समकालीन विचार व कमजोर पिछडे वर्ग के जीवन ने प्रभावित किया,उन्होने केवल छत्तीसगढ ही नही बल्कि देश के अन्य भागो मे लोगो को जो सतनाम का संदेश दिया है,इसके अतिरिक्त उन्होने समता बंधुत्व नारी उद्धार और आर्थिक विषमता को दूर करने के लिये एक समग्रक्रांति का आव्हान किया,वे एक समदर्शी संत के रूप मे छत्तीसगढ से सामाजिक चेतना लाने मे अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिये।।

Related Articles

Back to top button